हर किसी के जीवन में उतार चढ़ाव लगा ही रहता है, परंतु हमें किसी भी मुसीबत से हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारा हौसला होता है, अगर हमारा हौसला बुलंद हो तब हम किसी भी मंजिल को पा सकते हैं। आज हम एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बात करेंगे, जिसने अपने जीवन में बहुत सी परेशानियों का सामना किया परंतु कभी भी अपना हौसला कम नहीं होने दिया। अपने हौसले के बदौलत ही वह आज इस मुकाम पर पहुंच पाए हैं।
मनोज राय (Manoj Rai) की कहानी
मनोज बिहार के सुपौल के निवासी हैं। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जिस वजह से मनोज 12वीं तक पढ़ने के बाद, पढ़ाई छोड़ वर्ष 1996 में नौकरी के तलाश में दिल्ली चले गए। मनोज बहुत दिन तक नौकरी की तलाश करते रहे, परंतु जब उन्हें कही भी काम नहीं मिला तो उन्होंने सब्जी की रेहड़ी और अंडा बेचने का फ़ैसला किया। मनोज दिल्ली में अपनी रेहड़ी लगाने लगे। यह कार्य छोटा जरूर था परंतु इसी ने मनोज की पूरी जिंदगी बदल दी।

मनोज की दोस्ती उदय कुमार से हुई
दिल्ली में स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University) को कौन नहीं जानता? लोग बचपन से इस विश्वविद्यालय में आने का सपना देखते हैं और बहुत कड़ी मेहनत के बाद यहां पहुंच पाते हैं। मनोज यहां पढ़ने के लिए नहीं बल्कि राशन पहुंचने के लिए जाते थे। इस दौरान उनकी दोस्ती वहां पढ़ रहे एक छात्र उदय कुमार (Uday Kumar) से हो गई। वह भी बिहार के रहने वाले हैं, जिससे बहुत ही जल्द मनोज और उदय की दोस्ती हो गई।
केवल 2 हज़ार रुपए में मनोज ने पूरा किया अपना ग्रैजुएशन
मनोज बताते हैं कि उदय ने उन्हें आगे पढ़ने की सलाह दी। उसके बाद उन्होंने आगे पढ़ने का फैसला किया। मनोज दिल्ली के अरवींदो कॉलेज में इवनिंग क्लास में नामांकन ले लिए। उसके बाद वह दिन में अपनी सब्जी की रेहड़ी लगाते और शाम को कॉलेज जाते। मनोज ने केवल 2 हजार रुपए में अपना ग्रैजुएशन पूरा किया। उसके बाद उदय ने उन्हें युपीएससी की तैयारी करने की सलाह दी और मनोज ने अपने दोस्त की सलाह मान ली।
प्रोफेसर प्रसाद सिंह ने की मनोज की मदद
उदय की बात मानते हुए मनोज युपीएससी की तैयारी करने के लिए पटना वापस आ गए। कहते हैं, जहां मेहनत होती है वहां सफलता भी जरूर होती है। किसी दोस्त की मदद से मनोज की मुलाकात पटना (Patna) विश्वविद्यालय के भुगोल प्रोफेसर प्रसाद सिंह (Prasad Singh) से हुई। प्रोफेसर प्रसाद ने मनोज को भुगोल पढ़ने में बहुत मदद की, जिस वजह से मनोज ने युपीएससी की परीक्षा में भुगोल को ही अपना ऑप्शनल विषय चुना।

चार बार असफल होने के बाद भी मनोज ने हिम्मत नहीं हारी
साल 2005 में मनोज ने पहली बार युपीएससी की परीक्षा दी परंतु उन्हें सफलता नहीं मिल पाई। एक बार नहीं बल्कि चार बार मनोज को असफलता का सामना करना पड़ा। तैयारी के दौरान मनोज बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपना खर्चा निकालते थे। चार बार असफलता के बाद कोई भी अपने घुटने टेक देता, मगर मनोज ने हिम्मत नहीं हारी। वह फिर पूरे हौसले के साथ तैयारी करने लगे। इस बार मनोज ने अपनी रणनीति में कुछ बदलाव लाए।
अपने पांचवें प्रयास में हुए सफल
मनोज ने अपनी कमजोरी को समझते हुए इंग्लिश पर खास ध्यान दिया। इसके लिए उन्होंने हिंदू अखबार पढ़ना शुरू किया और साथ ही मेन्स के लिए खास तैयारी की। कहते हैं अंत भला तो सब भला आखिरकार साल 2010 में मनोज अपने पांचवें प्रयास में सफल हो ही गए और वह सिविल सेवा परीक्षा को पास कर ऑफिसर बन गए। मनोज अपनी सफलता का श्रेय अपने दोस्तों को देते हैं, जो उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे।
मनोज राय के जीवन की कथा किसी भी हार माने हुए व्यक्ति को प्रेरित कर सकती है।
Daily Dose मनोज के हौसले को सलाम करता है।
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