“कैसा डर है जो दिन निकल गया
अभी तो पूरी रात बाकी है,
यूँ ही नहीं हिम्मत हार सकता मैं
अभी तो कामयाबी से मुलाकात बाकी है”।
आज हम आपको जादव मोलाई पायेंग जी के बारे में बताएंगे जिन्हें फॉरेस्ट मैन के नाम से संबोधित किया जाता हैं। यह वो शख्सियत है जिन्होंने बिना घबराए केवल अपनी काबिलियत के दम पर 1360 एकड़ की बंजर ज़मीन को एक हर-भरे जंगल में परिवर्तित कर दिया है। आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में।
बचपन से प्रकृति से लगाव
असम के जोरहट ज़िला के कोकिलामुख गांव में जन्में वाले श्री जादव मोलाई पायेंग को बचपन से ही प्रकृति से बेहद ही लगाव था। वो हमेशा प्रकृति के करीब रहना चाहते थे। इसलिए पेड़ लगाने का कार्य वो हमेशा करते रहते थे। आज 55 साल से अधिक की उम्र होने के बाद भी वो लगातार पेड़ों को लगाने का कार्य कर रहे हैं।
एक हादसे ने जिंदगी बदली
जादव मोलाई पायेंग जी का जीवन सामान्य ढंग से चल रहा था कि उनके जीवन में एक अप्रिय घटना घटी। साल 1979 में असम में एक विनाशकारी बाढ़ आई थी। जिसमें घर पूरी तरह तबाह हो गए थे। वहीं इंसान और जंगली जानवर भी काल का ग्रास बन चुके थे। ऐसे में हर कोई सरकार से मदद पाने के लिए राहत समाग्री पर आश्रित था।
प्रकृति के लिए चिंता
बाढ़ की वजह से जानवर अपनी जान भी बचा नहीं पाए थे। इस भीषण त्रासदी में उन्होंने देखा कि उनके गांव के आस पास पशु पक्षियों की संख्या घटती जा रही है। पशु-पक्षी बाढ़ के कारण तबाह हो रहे थे। तब वो 10वीं के छात्र थे और वह ब्रह्मपुत्र नदी के समीप द्वीप से अपने घर जा रहे थे, तब उन्होने उस जमीन पर साँप समेत कई अन्य जीवों को मरते हुए देखा और वह यह देखकर बेचैन हो उठे। उन्होंने यह तय किया कि वो कुछ कुछ ऐसे पौधे लगाएगें जो आगे जाकर एक हरे भरे जंगल का निर्माण करेगें।
कम उम्र में की शुरूआत
बंजर हो चुकी ज़मीन को हरा-भरा करने की शुरूआत जादव मोलाई पायेंग जी ने मात्र 16 साल की उम्र में ही कर दी थी और इस दौरान वह उस द्वीप को एक नए सिरे से जंगल में तब्दील करना चाहते थे। अच्छे काम में हमेशा अड़चने आती हैं। गांववालों की भलाई के लिए किए जा रहे काम के बदले उन्हें काफी अपमान भी सहना पड़ा।
वन विभाग ने नही की मदद
धीरे-धीरे हालात बेहतर हुए। जिसके बाद उन्होंने गांव वालों का साथ मांगा, वो तैयार हो गए। जंगल बनाने के लिए उन्होंने वन विभाग से मदद के लिए गुहार लगाई, लेकिन उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया कि यह ज़मीन बंजर है।
बंजर जमीन हरा-भरा
गांव वाले उनके कार्यों का मजाक उड़ाते थे। लेकिन इसके बाद भी जादव मोलाई पायेंग जी ने प्रयास करने बंद नहीं किए। गांव वाले यह कहते थे कि यहाँ कुछ उग नहीं सकता। लेकिन वन विभाग के लोगों ने कहा कि अगर आप चाहों तो वहा पौधे लगा सकते हों। बस फिर क्या था, जादव खुद ही इस काम में लग गए और ब्रह्मपुत्र नदी के बीच एक वीरान टापू पर बाँस लगा कर इस काम की शुरुआत कर दी। वह रोजाना नए पौधे लगाते थे। कई बार बाढ़ ने उनके इस कार्य को रोकने की कोशिश की लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
कई तरह के पशु-पक्षी
30 साल के अंदर बंजर जमीन को बना दिया हरा-भरा जंगल
श्री जादव मोलाई पायेंग के कार्यों को देखते हुए गाँववालों ने भी उनका समर्थन करते हुए उन्हे कुछ बांस के पौधे और बीज उपलब्ध कराने शुरु कर दिये। इसके बाद से जादव ने लगातार नए पौधे लगाए और उनकी देखरेख करने लगे। जादव के अथक प्रयास का नतीजा था कि इतने सालों बाद आज उस जमीन पर एक घने जंगल का विकास हो चुका है। जोरहाट स्थित जंगल मोलाई फॉरेस्ट का नाम उन्ही के नाम पर पड़ा है। यह करीब 1360 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ आज रॉयल बंगाल टाइगर और गेंडे समेत तमाम विभिन्न प्रजातियों के पशु और पक्षी पाये जाते हैं।
सरकार ने किया सम्मानित
अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत की बदौलत मिट्टी और कीचड़ से भरी ज़मीन फिर से हरी-भरी करने वाले जादव मोलाई पायेंग जी को भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। यही नहीं उन्हें सरकार ने “फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया” के पुरस्कार से भी अलंकृत किया था। एक इंसान को हमेशा उसकी जगह के नाम से जाना जाता है लेकिन अपने कर्मों की बदौलत जादव मोलाई पायेंग के नाम से एक जंगल को संबोधित किया जाता है। यह सम्मान की बात है।