हमारे देश मे हर नदी के नाम के साथ एक कहानी जुड़ी होती है। लेकिन झारखंड के इस नदी की कहानी काफी आश्चर्यजनक है। हम बात कर रहे हैं स्वर्णरेखा नदी की जो झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ इलाकों में बहती है। 395 किलोमीटर लंबी यह बरसाती नदी देश की सबसे छोटी अंतरराज्यीय नदी है जिसके बेसिन का क्षेत्रफल करीब 19 हजार वर्ग किमी है। स्वर्णरेखा नदी अपने नाम के तरह ही सोना उगलती है। इसे सोने का नदी भी कहा जाता है।

नदी से सोना निकलने की वजह
ऐसा माना जाता है कि इस इलाके पर राज करने वाले नागवंशी राजाओं पर जब मुगल शासकों ने आक्रमण किया तो नागवंशी रानी ने अपने स्वर्णाभूषणों को इस नदी में प्रवाहित कर दिया, जिसके तेज धार से आभूषण स्वर्णकणों में बदल गए और आज भी प्रवाहमान है।
वहीं स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियो और एक्सपर्टस का मानना है कि नदी जिन इलाकों से गुजरती है वहां सोने के खदान हो सकते हैं। जब स्वर्णरेखा उन खदानों से गुजरती तो घर्षण की वजह से सोने के कण इसमें घुल जाते हं, जिसे आगे चलकर नदी किनारों पर लगा देती है।
सोना मिलने के बावजूद गरीबी कायम
नदी से सोना निकलने पर तो यहां के लोग काफी धनवान होंगे। लेकिन ये सच नहीं हैं। बल्कि इससे इतनी भी कमाई नहीं हो पाती जिससे घर चल सके। इसी वजह से यहां के पुरुषों ने इसे छोड़कर दूसरा काम करना शुरु कर दिया। लेकिन महिलाएं घर में आर्थिक मदद करने के लिए आज भी ये काम करती है। आज भी आप जाएं तो नदी में सूप लिए जगह-जगह खड़ी महिलाएं दिख जाएंगी।
बता दें यहां काम कर रही महिलाएं दिनभर में नदी से एक या दो चावल दाने के बराबर ही सोना निकाल पाती है। जिसे साहूकार हर दिन 80 रुपए में एक चावल दाने के बराबर सोना खरीदता है। जिसे बाजार ले जाकर वो करीब 300 रुपए में बेचता है। एक महिला पूरे महीने ये काम कर के मात्र 5 हजार रुपए कमाती है।
सूख रही सोने की नदी
एक्सपर्ट के मुताबिक अब ये नदी सूखने लगी है। इसके उद्गम स्थल पर यह एक नाला होकर रह गई है. जानकारों के मुताबिक, इस नदी में कम होते पानी की वजह से भूजल स्तर भी तेजी से गिरता जा रहा है. इसका मुख्य कारण जंगलों में हो रही कटाई को बताया जा रहा है।
कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं
हालांकि अबतक इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है कि नदी में सोना कहां से आता है। इसे लेकर कई रिपोर्टस सामने आए हैं लेकिन सभी में सिर्फ इतना लिखा गया है कि स्वर्णरेखा सैकड़ो परिवारों का गुजर-बसर करती है।