बिन मेहनत कोई फल नहीं मिलता,
बैठे-बैठे प्यासे को जल नहीं मिलता।
खाए हों धक्के जिस इंसान ने अपनी जिंदगी में,
उसे कभी भी कम नहीं मिलता।
आज हम आपको मध्य प्रदेश की रहने वाली आदिवासी कलाकार श्रीमती भूरी बाई के बारे में बताएंगे जिनका पूरा बचपन गरीबी और संसाधनो के अभावों में बीता। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपने जीवन में हार नहीं मानी। उनके हाथों की चित्रकारी ने आज उनकी पहचान भारत सहित अमेरिका में भी बना दी है। इसके लिए भारत सरकार ने उनके कार्य के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। आइये जानते हैं उनके बारे में।
आदिवासी परिवार में जन्मी
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पिटोल गांव के एक आदिवासी परिवार में जन्मी भूरी बाई का जीवन बहुत गरीबी में बीता है। भूरी बाई पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने गांव में घर की दीवारों पर पिथोरा पेंटिंग करने की शुरूआत की। भूरी बाई ने बाल मजदूर के रूप में भी काम किया है। जब वह मात्र 10 वर्ष की थी, तब उनका घर आग में जल गया था। इसके बाद उनके परिवार ने घास से एक घर बनाया और वर्षों तक वहां रहे।
कला को पहचान मिली
कभी 6 रुपये कमाने वाली भूरी बाई की पेंटिंग आज 10,000 से लेकर 1 लाख रुपये तक में बिकती हैं। उनकी कला को अंतर्राष्ट्रीय पहचान तब मिली जब वो भारत भवन के तत्कालीन निदेशक जे. स्वामीनाथन से मिली। जो एक कलाकार और कवि हैं। यहीं से उनका जीवन पूरी तरह बदल गया। उन्होंने श्रीमती भूरी बाई जी को कागज पर चित्र बनाने के लिए कहा। जब उन्होंने इसके बदले पैसे पूछे तो भूरी ने कहा कि रोज के 6 रुपये। लेकिन स्वामीनाथन ने उन्हें 150 रुपये दिए और उनकी कला की पहचान की।
भील पेंटिंग से पहचान
श्रीमती भूरी बाई जी पहली ऐसी आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने गांव में घर की दीवारों पर पिथोरा पेंटिंग करने की हिम्मत की है। पिटोल की भूरी बाई की खास बात यह है कि उन्हें हिंदी बोलनी भी ठीक से नहीं आती थी। वो केवल स्थानीय भीली बोली जानती थी। वो अपनी चित्रकारी के लिए कागज तथा कैनवास का इस्तेमाल करने वाली प्रथम भील कलाकार हैं। भूरी बाई ने अपना सफर एक समकालीन भील कलाकार के रूप में शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी पेंटिग की पहचान भारत सहित दुनियाभर में होने लगी।
आमजनजीवन को दर्शाया
भूरी बाई जी की पेटिंग की खास बात यह है कि वह जब भी चित्र बनाना शुरू करती हैं तो वह अपना ध्यान भील जीवन और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर पुन: केंद्रित करती हैं और जब कोई विशेष विषय-वस्तु प्रबल हो जाती है तो वह अपने कैनवास पर उसे उतारती हैं। उनके चित्रों में जंगल में जानवर, वन, वृक्षों तथा भील देवी-देवताएं, पोशाक, गहने तथा गुदना (टैटू), झोपड़ियां तथा अन्नागार, हाट, उत्सव तथा नृत्य और मौखिक कथाओं सहित भील के जीवन के प्रत्येक पहलू को समाहित किया गया है।
सरकार के द्वारा सम्मानित
आदिवासी इलाके से आने वाली श्रीमती भूरी बाई जी ने आज अपनी कला की बदौलत देश-विदेश में अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय मंच पर रौशन किया है। उनकी अद्भुत चित्रकारी की कला को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। यही नहीं उन्हें मध्यप्रदेश सरकार से सर्वोच्च पुरस्कार शिखर सम्मान प्राप्त हो चुका है। 1998 में मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें अहिल्या सम्मान से विभूषित किया था।
आज उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। आज वह लोगों के लिए प्रेरणा हैं।