“भारत में ही महफूज़ थी वो,
भारत में ही कहीं खो गई।
आज हम आपको एक ऐसी ही महिला ‘नीरजा’ के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपने फर्ज को अंजाम देते हुए एक पल के लिए भी खुद के बारे में नहीं सोचा। नीरजा ने अपनी जान देकर कई लोगों की जान बचाई थी। आइए जानते हैं नीरजा भनोट के बलिदान के बारे में।
नीरजा भनोट का परिचय
नीरजा भनोट का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था। नीरजा की मां का नाम रमा भनोट और पिता का नाम हरीश भनोट था। वो अपने माता-पिता की लाड़ली बेटी थी। नीरजा के पिता पत्रकार थे। नीरजा की शादी मात्र 21 वर्ष की उम्र में ही हो गई थी। लेकिन उनका वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं था। उनका पति उन्हें दहेज के लिए परेशान करता था। जिससे तंग आकर मात्र 2 महीने में ही नीरजा वापस अपने घर मुंबई आ गई। नीरजा वह महिला हैं जिन्होंने लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी थी।
फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी मिली
नीरजा ने शादी के कष्टों को सहने के बाद पैन ऍम में फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी के लिए अप्लाई किया। जिसके बाद फ्लाइट अंटेडेंट के रुप में चुने जाने पर वो मायामी गई। ट्रेनिंग के दौरान नीरजा ने एंटी-हाइजैकिंग कोर्स में एड्मिशन लिया। नीरजा की जिंदगी में सब सही चल रहा था। तभी 5 सिंतबर 1986 को उनकी पैन एम फ्लाइट 73 मुंबई से न्यूयॉर्क जा रही थीं। प्लेन में 361 यात्री और 19 क्रू मेंबर थे। नीरजा उस प्लेन में फ्लाइट अंटेडेंट थी।
नीरजा का प्लेन हुआ हाइजैक
जब नीरजा का प्लेन जब न्यूयॉर्क के लिए रवाना हुआ तभी उसे हाइजैक कर लिया गया। नीरजा ने जब ये बात पायलट को बताई तो तीनों पायलट सुरक्षित निकल लिए। पायलटों के जाने के बाद पूरे प्लेन और यात्रियों की जिम्मेदारी नीरजा पर आ गई। आतंकवादियों ने नीरजा को सभी अमेरिकी नागरिकों का पता लगाने के लिए सभी के पासपोर्ट इकठ्टा करने को कहा। नीरजा ने पासपोर्ट तो इकठ्टा किए लेकिन उन्होंने चालाकी दिखाते हुए सभी अमेरिकी नागरिकों के पासपोर्ट छिपा दिए।
यात्रियों को मारना शुरू
17 घंटे के बाद अतंकवादियों ने यात्रियों को मारना शुरू कर दिया। प्लेन में बम फिट कर दिया। लेकिन नीरजा इन सब से घबराई नहीं। सरकार से अपनी डिमांड पूरी होते ना देख आतंकियों ने एक ब्रिटिश को प्लेन के गेट पर लाकर खड़ा कर दिया और पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजा तो वह उसको मार देंगे। लेकिन नीरजा ने उस आतंकी से बात करके ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया।
यात्रियों की जान बचाई
प्लेन का ईंधन समाप्त हो चुका था और अंधेरा भी गहराने लगा था। नीरजा को यह बात पता थी। इसलिए अंधेरा होते ही उन्होंने यात्रियों को खाना देने के साथ एक-एक पर्ची थमा दी जिसमें इमरजेंसी दरवाजे से बाहर निकलने का रास्ता था। अंधेरे में नीरजा ने तुरंत प्लेन के सारे इमरजेंसी दरवाजे खोल दिए। यात्री उन दरवाजों से बाहर कूदने लगे। यात्रियों को अंधेरे में प्लेन से कूदकर भागता देख आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। इसमें कुछ यात्रियों को हल्की-फुल्की चोट जरूर लग गई। लेकिन सभी 360 यात्री पूरी तरह से सुरक्षित प्लेन से बाहर निकल गए थे।
जान की कुर्बानी दी नीरजा
सभी यात्रियों को बाहर निकाल नीरजा जैसे ही प्लान से बाहर जाने लगी तभी उन्हें बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर, पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया था। सबके मना करने के बाद भी नीरजा उन बच्चों को बचाने के लिए जैसी ही प्लेन के इमरजेंसी गेट की ओर बढऩे लगी तभी चौथा आतंकी सामने आ गया और नीरजा पर गोलियां चलाने लगा। नीरजा ने बच्चों को सुरक्षित नीचे धकेल दिया और खुद आंतकी से भिड़ गईं। आतंकी ने नीरजा के सीने में कई गोलियां उतार दीं। केवल 22 वर्ष की आयु में नीरजा ने एक दूसरे देश के लोगों के लिए हंसते-हंसते अपनी जान कुर्बान कर दी।
पाकिस्तान भी रोया था
नीरजा की शहादत को देख भारत के साथ-साथ पाकिस्तान भी रोया था। यहां तक कि अमेरिका भी नीरजा के इस बलिदान के आगे नतमस्तक हो गया था। नीरजा की बहादूरी को उनकी शहादत के बाद कई अवार्ड से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने नीरजा को सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया। पाकिस्तान सरकार ने उन्हें तमगा-ए-इंसानियत से नवाज़ा। अमेरिकी सरकार ने नीरजा को 2005 में जस्टिस फॉर क्राइम अवॉर्ड से सम्मानित किया था।
नीरजा के शहादत पर फ़िल्म भी बन चुकी है। नीरजा पर हमें गर्व है।