इस से बेहतर कर दिखायेंगे,
हौसले में कमी नहीं,
एक ख्वाब टूटा है
पर कोशिशें थकी नहीं।
आज श्री रतन टाटा का नाम भला कौन नहीं जानता। पद्मभूषण, पदमविभूषण से सम्मानित श्री रतन टाटा जी की गिनती दुनिया के महान दानवीरों में होती है। वो ना केवल एक सफल बिज़नेसमैन है बल्कि लोगों के लिए एक प्रेरणा भी हैं। टाटा जी ग्रुप ऑफ कंपनी के चैयरमैन श्री रतन टाटा का स्वभाव शर्मीला है और वो दुनिया की झूठी चमक दमक से दूर ही रहते हैं। आइये जानते हैं उनके सादगी के बारे में।
बचपन में आर्किटेक्ट था बनना
महाराष्ट्र के मुंबई में जन्में श्री रतन टाटा जी नवल टाटा जी के बेटे हैं जिन्हे नवजबाई टाटा जी ने अपने पति श्री रतनजी टाटा जी की मृत्यु के बाद गोद लिया था। श्री रतन टाटा जी भले ही पूंजीपति परिवार से थे लेकिन इसके बावजूद उनका बचपन अच्छा नहीं बीता। उनके माता-पिता साथ नहीं रहते थे। श्री रतन टाटा जी बहुत छोटे थे जब उनके माता -पिता अनबन के चलते अलग रहने लगे। श्री रतन टाटा जी का पालन-पोषण उनकी दादी ने किया और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह मुंबई चले गए। श्री रतन टाटा जी का बचपन का सपना एक आर्किटेक्ट बनने का था। लेकिन उनके पिता नवल टाटा जी चाहते थें कि वे इंजीनियर बने। अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होंने जमकर पढ़ाई की।
पिता के कहने पर इंजीनियरिंग किया
उन्होंने पिता के अनुरूप इंजीनियरिंग का कोर्स किया और इटंर्नशिप के लिए टाटा जी स्टील के जमशेदपुर प्लांट आ गए। उन्होंने अपने आर्किटेक्ट बनने के सपनें को त्याग दिया और इंजीनियरिंग की ओर ध्यान देने लगें। रतन टाटा जी ने 1970 तक टाटा जी समूह की अलग –अलग कंपनियों के साथ काम किया। 1971 में उन्हें टाटा जी समूह के मैनेजमेंट प्रोग्राम में प्रमोट किया गया। उसके बाद उन्हें टाटा जी समूह के टीवी और रेडियो बनाने वाली कंपनी ‘Nelco’ को सौप दिया गया जो पहले बहुत ही घाटे में चल रही थी लेकिन सिर्फ तीन साल में श्री रतन टाटा जी ने नेलको कंपनी को आगे बढ़ाया।
अध्यक्ष बनाए गए रतन
साल 1981 में टाटा जी समूह ने रतन टाटा की काबिलियत को देखते हुए JRD TATA ने उन्हें अध्यक्ष बनाया। फिर श्री रतन टाटा के अध्यक्ष बनने के 10 साल बाद सन 1991 में JRD TATA ने उन्हें टाटा जी समहू का नया चेयरमैन बनाया और फिर उसके बाद टाटा जी समहू और भी तेजी से आगे बढ़ने लगा। जेआरडी टाटा जी ने टाटा जी संस का चैयरमैन पद छोड़ दिया और श्री रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। जब रतन टाटा ने अपना पद संभाला तो कंपनी में उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। कई कंपनियों के प्रमुख, जिन्होंने कई दशक टाटा जी ग्रुप से जुड़कर खर्च किए थे, काफी ताकतवर और प्रभावी हो गए थे। श्री रतन टाटा को हटाने के लिए कई मुहिम भी छेड़ी गई। लेकिन लोगों के विरोध के बावजूद उन्होंने युवा टैलेंट को अपने साथ जोड़ा और उन्हें जिम्मेदारियां दीं।जिसकी वजह से कंपनी का मुनाफा और बढ़ गया।
कई उपलब्धियां मिली
अपने 21 साल के कार्यकाल में श्री रतन टाटा ने टाटा जी ग्रुप की आमदनी को 40 गुना अधिक कर दिया और टाटा जी ग्रुप के लाभ को 50 गुना पहुंचा दिया. इसके अलावा श्री रतन टाटा जी के कमान लेते ही टाटा जी ग्रुप ने टाटा जी टी ब्रांड के तले टीटले, टाटा जी मोटर्स के तले जैगुआर लैंड रोवर और टाटा जी स्टील के तले कोरस खरीदे। जिसके बाद टाटा जी ग्रुप भारत के बड़े ब्रांड से ग्लोबल बिज़नेस में दाखिल हुआ। श्री रतन टाटा जी, टाटा जी ग्रुप के 5वें अध्यक्ष बनें। टाटा जी ग्रुप में महज 6 अध्यक्ष बने हैं जिसमें से 2 अध्यक्ष टाटा जी परिवार से नहीं है। टाटा जी ग्रुप को देश की भरोसेमंद कंपनी माना जाता है। साइरस मिस्त्री के हटाए जाने के बाद श्री रतन टाटा जी ने अंतरिम चेयरमैन के तौर पर कुछ समय काम किया। देश में पहली बार नमक बनाने का काम 1927 में गुजरात के ओखा में शुरू किया गया था जिसे जेआरडी टाटा जी ने 1938 में खरीद लिया था और इसी के साथ टाटा नमक की शुरुआत हुई।
कई सम्मान से हुएं सम्मानित
रतन टाटा जी को उनके कार्यों के लिए कई सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है। इनमें से सबसे प्रमुख भारत 2000 पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। यही नहीं नवंबर 2007 में, फॉर्च्यून पत्रिका ने उन्हें व्यावसायिक क्षेत्र के 25 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में और 2008 में टाइम पत्रिका में विश्व के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया गया था। आज उन्हें दुनिया मे पहचाना जाता है। अपने हौसले और नई सोच के जरिए उन्होंने टाटा समूह को एक नई ऊंचाई प्रदान की है जो कि अतुलनीय है।