हर इंसान कुदरत का एक अनमोल हीरा है । अग्नि पुराण के अनुसार ” मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है”, भगवान ने हर मानव को कोई न कोई हुनर ज़रूर दिया है। ज़रूरत है तो उसे पहचानने की । आज हम आपको एक ऐसे ही इंसान के बारे में बताने जा रहे है जिनके पास कोई डिग्री नहीं थी, न ही किसी प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट का टैग , पर फिर भी लोगो ने उनकी काबिलियत को सलाम किया ।वह बस पांचवी पास है पर उन्होंने 20 से ज्यादा मशीने बनाई है । राष्ट्रपति भवन में बतौर मेहमान भी रह चुके है। आइये जानते है उस शख़्स के बारे में।
गुरमैल सिंह धौंसी का परिचय।

गुरमैल सिंह धौंसी राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के रहनेवाले है।
उनकी उम्र 62 वर्ष है । गुरमैल सिंह को बचपन में पढ़ाई में मन नही लगता था । वह पढ़ाई से दूर भागते थे। वह अपने पिता के दबाब में ज्यादा से ज्यादा छठी कक्षा तक ही पढ़ पाए। पर अभी भी वो अपने आप को पाचवी कक्षा तक ही पढ़ा हुआ मानते है।
आगे चल कर उन्होंने पढ़ाई से पूरी तरह दूरियां बना ली।
वर्कशॉप में काम किया।

पढ़ाई छोड़ने के बाद वह वर्कशॉप में काम करने लगे। जहां ट्रैक्टर के कल-पुर्जे बनते और ठीक होते थे। उस वर्कशॉप में छोटे-छोटे कृषि यंत्र भी बनते थे । कुछ समय तक वहां काम सीखने के बाद उन्होंने अपनी खुद की वर्कशॉप शुरू की ।
वर्कशॉप का नाम धौंसी मैकेनाइजेशन रखा ।
गुरमैल सिंह धौंसी ने अपने वर्कशॉप का नाम धौंसी मैकेनाइजेशन रखा । साल 1982 में उन्होंने इस वर्कशॉप की नींव रखी। आज यह वर्कशॉप एक कंपनी के रूप में तब्दील हो चुकी है । अब इलाके में गुरमैल सिंह की पहचान एक आविष्कारक के तौर पर है। बतौर फैब्रीकेटर और मैकेनिक अपना करियर शुरू करने वाले गुरमैल ने कभी नहीं सोचा था कि वह एक दिन बड़ी-बड़ी मशीनें बनाने लगेंगे।
सबसे पहला मशीन बनाया।

सबसे पहले उन्होंने शुरुआत सरसों की थ्रेसिंग मशीन बनाकर की। जब उन्होंने अपनी खुद की वर्कशॉप शुरू की, तो लोगों के ट्रैक्टर और दूसरी मशीनों की मरम्मत करने के साथ-साथ, वह कृषि यंत्र भी बनाते थे। वह कहते हैं कि बाजार में उपलब्ध कृषि यंत्रों के अलावा, वह किसानों की जरूरत के हिसाब से भी काम करना चाहते थे। जैसे उन्होंने देखा कि सरसों की कटाई के बाद, इसकी थ्रेसिंग के लिए किसान परिवारों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। हाथों से सरसों को कूटना, फिर साफ़ करना, और इसके बाद भी उन्हें अच्छे नतीजे नहीं मिलते थे। इसलिए, उन्होंने सोचा कि क्यों न इस काम के लिए कोई मशीन हो। 1986 में उन्होंने सरसों की थ्रेसिंग मशीन बनाई, जो हाथों-हाथ बिकी।
थ्रेसिंग मशीन को कंबाइन मशीन में जोड़ा ।
उनके गाँव में कुछ लोग गेहूं की कटाई और थ्रेसिंग के लिए हार्वेस्टर कंबाइन मशीन लेकर आए। लेकिन उन्होंने देखा कि इस मशीन का काम सिर्फ एक ही मौसम में था, जब गेहूं की फसल होती थी। ऐब उन्हें लगा कि इस मशीन में बदलाव करके इसे दूसरी फसलों में भी इस्तेमाल में लेना चाहिए। इसलिए उन्होंने सरसों की थ्रेसिंग मशीन भी कंबाइन में ही जोड़ दी।
20 से ज्यादा मशीनें बना चुके हैं।
गुरमैल सिंह धौंसी अब तक 20 से ज्यादा मशीनें बना चुके हैं। जिनमें थ्रेसिंग मशीन के अलावा, लोडर, वाटर लिफ्टर, मिनी कंबाइन, रिज मेकर, वुड चीपर, कम्पोस्ट मेकर, ट्री प्रुनर जैसी मशीनें शामिल हैं। साल 2007 में गुरमैल सिंह ने ‘कम्पोस्ट मेकर’ और ‘ट्री प्रुनर’ मशीन बनाई। इन दोनों मशीनों के लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है।
इफको के चेयरमैन रहे प्रेरणास्रोत ।
इफको के चेयरमैन रहे स्वर्गीय सुरेंद्र जाखड़, उनके लिए प्रेरणास्रोत रहे। उन्होंने उनकी बनाई कुछ मशीनों को देखा और उनसे कहा कि वो अपनी किसी भी मशीन की टेस्टिंग उनके खेतों में कर सकते है। उन्होंने ही उनसे ‘कम्पोस्ट मेकर’, और ‘ट्री प्रूनर’ मशीन बनाने के लिए कहा था।
जाखड़ ने उन्हें 2006 में एक ऐसी मशीन बनाने के लिए कहा, जिससे कि कृषि अपशिष्ट से कम समय में खाद बन जाए।
कंपोस्ट मेकर और ट्री प्रूनर भी बनाया।
गुरमैल ने अपनी कंपोस्ट मेकर मशीन पर काम करना शुरू किया। इस बार उन्होंने ऐसा सिस्टम तैयार किया कि जब मशीन पराली की कटाई करे, तो बीच-बीच में इस पर पानी छिड़का जाए और इसे हवा भी लगती रहे। साथ ही, उन्होंने मशीन में 35 डिग्री से ज्यादा और 60 डिग्री से कम तापमान रखा, ताकि कृषि अपशिष्ट जल्दी गलने व सड़ने लगे। एक-दो ट्रायल लेने के बाद, उन्होंने इस मशीन से बनी खाद को लैब में टेस्ट कराया। उन्हें पता चला कि उनकी बनाई खाद में अच्छी मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम है। उनकी यह मशीन सफल हो गयी और उन्होंने इसे ‘कंपोस्ट मेकर’ नाम दिया। जब वह कंपोस्ट मेकर पर काम कर रहे थे, तो जाखड़ ने ही उन्हें बागों में पेड़ों की कटाई-छंटाई प्रूनिंग के लिए एक मशीन बनाने के लिए भी कहा। क्योंकि, बागवानी करनेवाले लोगों के लिए फलों के पेड़ों की कटाई-छंटाई करना बहुत मुश्किल होता है। पेड़ों पर चढ़कर इन्हें ऊपर से काटना या फिर सीढ़ी लगाकर काटने में, बहुत सी परेशानियां आती हैं।
उन्होंने इस काम को भी चुनौती की तरह लिया और बागों में पेड़ों की कटाई-छंटाई के लिए मशीन बनाने में जुट गए। अपनी इस मशीन को उन्होंने ‘बाग प्रूनर मशीन’ नाम दिया। ट्रैक्टर से चलनेवाली इस मशीन में हाइड्रोलिक सिस्टम लगा है और पेड़ों की प्रूनिंग के लिए कटर लगाए गए हैं। इस मशीन से 10 से लेकर 20 फ़ीट तक की लम्बाई वाले पेड़ों की प्रूनिंग अच्छे से की जा सकती है। एक अकेला इंसान भी ट्रैक्टर और इस मशीन की मदद से एक घंटे में सैकड़ों पेड़ों की प्रूनिंग कर सकता है।
राष्ट्रपति से सम्मानित हुए ।

गुरमैल सिंह को कंपोस्ट मेकर मशीन के लिए 2012 में, तत्कालीन राष्ट्रपति ने सम्मानित भी किया था। इसके बाद 2014 में, उन्हें दो हफ्तों तक राष्ट्रपति भवन में रहने का मौका भी मिला। अब तक वह लगभग 15 मशीनें बेच चुके हैं। अपनी इन दोनों मशीनों के लिए उन्हें सराहना और सम्मान, दोनों मिले हैं। साल 2009 में उन्हें नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF) से जुड़ने का मौका मिला। NIF की टीम ने उनकी मशीनों की अच्छे से जांच-पड़ताल करने के बाद, न सिर्फ उन्हें सम्मानित किया बल्कि इन मशीनों के लिए पेटेंट फाइल करने में भी उनकी मदद की है।
बिना कोई डिग्री के इतनी उपलब्धियां सचमुच अद्भुत है। हमें गुरमैल सिंह से प्रेरणा लेने की जरूरत है।