बचपन में अक्सर हम अपने जीवन को लेकर लक्ष्य बनाते हैं। इस लक्ष्य को पाने के लिए हम हमेशा उचित राह पर चलने की कोशिश करते हैं। लेकिन ऐसा जरुरी नहीं कि हर कोई अपने लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब हो जाए। इसके पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं। लेकिन उस वक्त अहम ये होता है कि हमने किस तरह से अपनी असफलता को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़े। कई लोग ऐसे होते हैं जो अपनी किस्मत को दोष देते हुए हार मान जाते हैं वहीं कई ऐसे भी होते हैं जो अपनी किस्मत से लड़ने का फैसला करते हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही महिला की कहानी बताएंगे जिन्होने अपने सपनों के टूट जाने के बाद हार नहीं मानी बल्कि उसका सामना करते हुए कई लोगों को उनके सपने पूरा करने की हिम्मत बनी।
ये कहानी कोल्हापुर की 69 वर्षीय नसीमा मोहम्मद अमीन हुजुर्क की है। बचपन से ही एथ्लीट बनने का सपना देखने वाली नसीमा को जब ये पता चला कि अब वो कभी अपने पैरो पर खड़ी नहीं हो पाएंगी उनके होश उड़ गए। दरअसल नसीमा को 17 साल की उम्र में पेराप्लाइसिया( Paraplysia) पीड़ित हो गई थी। ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति के दोनों पैर आंशिक रिप से या पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो जाते हैं और उन्हे अपनी पूरी जिन्दगी व्हीलचेयर के सहारे रहना पड़ता है। लेकिन आज नसीमा मोहम्मद अमीन हुजुर्क तमाम असहायों की जिंदगी में उम्मीद की किरण बनकर उन्हे अपने पैरों पर खड़े होने की प्रेरणा दे रही हैं!
नसीमा बनी हजारों दिवयांगो का सहारा

नसीमा हेल्पर्स ऑफ द हैंडिकैप्ड कोल्हापुर( HOHK) की संस्थापक और अध्यक्ष हैं। जिसमें हजारों दिव्यांगों के लिए मुफ्त सेवा उपलब्ध कराई जाती है। नसीमा ने पिछले 35 सालों में Paraplysia से पीड़ित 13 हजार से ज्यादा लड़के और लड़कियों का पुनर्वास कराया है। आज लोग के बीच वो नसीमा दीदी के नाम से मशहूर हैं।
व्यापारी से मिली प्रेरणा
अपने सपनों को टूटता देख नसीमा काफी उदास रहा करती थी। लेकिन वो कहते हैं ना अंधेरे में एक उम्मीद की किरण ही काफी होती है। नसीमा की जिन्दगी में वो उम्मीद की किरण बनकर आया एक व्यापारी। नसीमा की मुलाकात एक व्यापारी से होती है जो खुद भी इस बीमारी से ग्रस्त था। लेकिन उसने अपनी इस बीमारी को अपनी कमजोरी नहीं बनने दी। बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद खुद की बनाई एक विशेष मॉडल की कार से सफर किया करते थे। इस मुलाकात के बाद नसीमा को काफी प्रेरणा मिली।
सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम्स विभाग में मिली नौकरी

नसीमा को उस मुलाकात के बाद एक अलग एनर्जी का एहसास हुआ। जिसके बाद उसने अपनी पढ़ाई शुरु कर दी। नसीमा को सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम्स विभाग में नौकरी मिल गई। नौकरी मिलने के बाद भी नसीमा को कुछ खालीपन सा लगता था। इस वजह से नसीमा ने उन्होंने उस जॉब से वीआरएस ले लिया और रिटार्यमेंट के मिले पैसे से उसने ‘ पंग पुनर्वासन संस्थान’ खोली, जहां पैराप्लेजिक्स से पीड़ित लोगों का इलाज होता है।
नसीमा के कदम यहीं नहीं रुके। उसने दोस्तों की मदद से 1984 में हेल्पर्स ऑफ द हैंडिकैप्ड कोल्हापुर संस्थान की यबी शुरुआत की। इस संस्थान में मानसिक और इमोशनल परेशानियों और लोगों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की जाती है।
नसीमा दीदी का ये मानना है कि लोग अक्सर अपने सपने को पूरा करने के लिए भागते रहते हैं। लेकिन दूसरों के सपनों को पूरा करने में अलग सुकुन मिलता है। आज नसीमा अपने संस्थान के जरिए हजारों लोगों को उनके सपनों तक पहुंचाने में मदद करती है।