इंसान के कला की कद्र हर जगह होनी चाहिए। कला ही ऐसी चीज है जो अगर किसी इंसान के अंदर हो तो वह उसे पहचान दिला सकता है।
आज हम आपको पंजाब की लाजवंती जी के बारे बताएंगे जिन्होंने अपनी फुलकारी की कला से सैंकड़ों महिलाओं के जीवन में खुशियों के रंग भरे हैं एवं उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का महान कार्य भी किया है। 64 साल की लाजवंती जी छह साल की उम्र से यह काम कर रही है।फुलकारी कला के लिए उन्हें पद्मश्री सहित कई राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा जा चुका है। आइए जानते हैं उनके बारे में।
परिवार का सहयोग मिला
पंजाब के पटियाला की रहने वाली श्रीमती लाजवंती फुलकारी की कला में माहिर हैं। लाजवंती जी ने फुलकारी की कढ़ाई और कपड़े बनाने का काम अपने परिवार की बुजुर्ग महिलाओं से सीखा था। बचपन से ही वो अपने कपड़े खुद सिला करती थीं। विवाह-शादी में रिशतेदारों के कढ़ाई वाले सूट समेत और कपड़े भी तैयार करती थी। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उन्होंने फुलकारी की कला को ही अपना रोजगार बना लिया। शादी के बाद लाजंवती जी ने, फुलकारी की कढ़ाई को जीवन का आधार बना लिया और इसे आगे बढ़ाने का फैसला किया।
रोजगार का साधन बनाया
लाजवंती ने अपनी फुलकारी की कला से तरह-तरह की कढ़ाई की। उन्होंने इसे अपने रोजगार का साधन बना लिया। उन्होंने फुलकारी कढ़ाई वाले कपड़े बाजार में बेचने शुरू कर दिए। देखते ही देखते उनके द्वारा बनाए गए कपड़ों की मांग बढ़ती चली गई। श्रीमती लाजवंती जी ने लोगों की मांग को पूरा करने के लिए अपने साथ और महिलाओं को जोड़ा।
महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
लाजवंती ने अपनी मेहनत से अपनी पहचान बनाई थी। परिवार की स्थिति को सही करने के लिए उन्होंने फुलकारी की कढ़ाई करनी प्रारंभ की। खुद को आत्मनिर्भर बनाते हुए उन्होंने अन्य महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ने का विचार किया। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की 500 से अधिक महिलाएं लाजवंती जी के साथ जुड़कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहीं हैं। ये महिलाएं फुलकारी का काम सीखकर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। अब वे और महिलाओं को अपने साथ जोड़ कर उन्हें फुलकारी की कढ़ाई सिखा रही हैं। जरूरतमंद महिलाओं को फुलकारी का छापा, कपड़े और रील जैसी सामग्री वह खुद मुहैया करवाती हैं।
देश-विदेश में दिलाई पहचान
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही श्रीमती लाजवंती जी ने फुलकारी कला को भी देश ही नहीं विदेशों में भी पहचान दिलाई। उनके द्वारा बनाए गए कपड़ों की मांग विदेशों में भी होने लगी। लाजवंती जरूरतमंद महिलाओं को फुलकारी, छापे, कपड़े और रील की सामग्री मुहैया करवाती हैं। इस सामग्री के साथ फुलकारी तैयार करके इसको बेचकर कमाई होती है। महिलाओं के ग्रुप और सोसायटियों के द्वारा फुलकारी की कला को कारोबार के साथ जोड़कर इसे आय का साधन बना लिया है। साथ ही इस कला से विदेशी भी मंत्रमुग्ध हो रहे हैं।
पद्मश्री सम्मान से सम्मानित
फुलकारी की कढ़ाई को नई पहचान दिलाने एवं महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने पर श्रीमती लाजवंती को सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। यही नहीं वर्ष 1992 में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ सम्मानित किया गया था। इसके बाद उन्होंने दिन-रात एक करके फुलकारी को विशेष मुकाम तो दिलाया ही, साथ ही सैकड़ों महिलाओं के लिए रोजगार के रास्ते भी खोल दिए।
आज उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। अपने कला के माध्यम से उन्होंने समाज की महिला को आत्मनिर्भर बनाया यह प्रशंसनीय है।