बिहार (Bihar) के ‘माउंटन मैन’ कहे जाने वाले दशरथ मांझी को कौन नहीं जानता? उन्होंने केवल एक छेनी और एक हथौड़े से 22 वर्षों में गहलौर पहाड़ को काटकर रास्ता बनाने का अनोखा कार्य किया था। अब लद्दाख (Ladakh) के भी एक माउंटमैन चर्चा का विषय बन गए हैं। इस माउंटमैन ने अपना सबकुछ बेचकर हिमालयी क्षेत्र के दुर्गम पहाड़ों को काट कर 38 किमी लंबी सड़क बना दी।
लामा त्सुलटिम छोंजोर (Lama Tsultim Chonjor)
यह नामुंकिन कार्य करने वाले व्यक्ति का नाम लाम त्सुलटिम छोंजोर हैं। लामा त्सुलटिम लद्दाख की जंस्कार घाटी के स्तोंग्दे गांव के रहने वाले हैं। अब उन्हें लद्दाख का दूसरा दशरथ मांझी कहा जाता है। पहाड़ काटकर रास्ता बनाने वाले 70 वर्षीय लामा त्सुलटिम छोंजोर को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। लामा त्सुलटिम ने अपने कार्य से लोगों के जहन में दशरथ मांझी की यादें ताज़ा कर दी हैं।

सड़क बनाने में पूरी संपत्ति लग गई
जंस्कार घाटी के लोगों के लिए लामा त्सुलटिम ‘मेमे छोंजोर’ हैं। जिसका अर्थ दादा छोंजोर होता है। यह 38 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने में ना केवल लामा त्सुलटिम की कड़ी मेहनत लगी बल्कि उनकी चल-अचल संपत्ति भी लगी है। जब वह इस सड़क पर पहली बार जीप लेकर करग्या गांव पहुंचे थे, तब ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना नहीं था। लामा त्सुलटिम छोंजोर को पद्मश्री मिलने से जंस्कार घाटी में खुशी का माहौल है। साथ ही हिमाचल के जनजातीय ज़िला लाहुल-स्पीति में भी जश्न का माहौल है।
यह भी पढ़े :- 80 वर्षों से ‘लौंडा नाच’ की विरासत को चला रहे थे, अब भारत सरकार द्वारा पद्मश्री दिया गया
सड़क से गांवों को होगा लाभ
यह सड़क शिंकुला दर्रा से होकर लेह लद्दाख के कारगिल ज़िला के उपमंडल जंस्कार के पहले गांव करग्या तक बनाया गया है। अटल टनल रोहतांग के बाद केंद्र सरकार की प्राथमिकता शिंकुला दर्रा के नीचे सुरंग निर्माण की है। इसके अलावा इस सड़क का लाभ हिमाचल को भी मिलेगा क्योंकि सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) अब दारचा-शिंकुला दर्रा सड़क परियोजना पर कार्य कर रहे हैं। इस सड़क के द्वारा शिंकुला दर्रा और करग्या गांव का सफर आसान हो गया।

लामा त्सुलटिम बिना किसी के मदद के सड़क निर्माण किए
जब सरकार की ओर से सड़क के लिए कोई काम नहीं किया गया, तब लामा त्सुलटिम छोंजोर ने यह ज़िम्मा अपने कंधों पर लिया और उन्होंने वर्ष 2014 में खुद ही इसके लिए पहल की। इसके लिए लामा त्सुलटिम ने अपनी ज़मीन और संपत्ति तक बेच दी। जब उन्होंने इसकी शुरूआत की तब अनेक लोगों ने उनका मज़ाक भी उड़ाया, लेकिन लामा त्सुलटिम इससे रुकने वाले कहां थे। उन्होंने अपना कार्य जारी रखा और बिना किसी मदद के अपने कार्य को मंजिल तक भी पहुंचाया। यहां तक की जब बीआरओ शिंकुला पहुंच गया तब भी लामा त्सुलटिम ने जंस्कार की तरफ से सड़क निर्माण का कार्य जारी रखा गया।

लामा त्सुलटिम कई बार हो चुके हैं सम्मानित
इस कार्य के लिए बॉर्डर रोड टास्क फोर्स (बीआरटीएफ) के तत्कालीन कमांडर एसके दून (Sk dun) ने लामा त्सुलटिम की खुब तारीफ की। लाहुल स्पीति प्रशासन ने 15 अगस्त 2016 को केलंग में लामा त्सुलटिम छोंजोर को सम्मानित किया गया था। सिर्फ़ इतना ही नहीं साल 2016 में बीआरओ के कमांडर कर्नल केपी राजेंद्रा (KP Rajendra) ने भी लामा को शिंकुला में सम्मानित किया था। इस सिद्ध कर्मयोगी को पद्मश्री मिलना जनजातीय ज़िला लाहुल स्पीति और जांस्कर व लद्दाख के लिए गौरव की बात है।
अपनी संपत्ति बेचकर 57 लाख की मशीनरी खरीदी
लामा त्सुलटिम ने सड़क निर्माण के लिए अपनी संपत्ति बेचकर 57 लाख की मशीनरी खरीदी थी। इसके बाद उन्होंने कारगिल ज़िले के जंस्कार के करग्या गांव से हिमाचल प्रदेश की सीमा तक सड़क निर्माण की पहल की। लामा त्सुलटिम कहते हैं कि जंस्कार में सड़क संपर्क स्थापित होना ही उनके लिए सबसे बड़ा इनाम होगा।
लामा त्सुलटिम छोंजोर की हिम्मत और कड़ी मेहनत तारीफ के योग्य है।