आमतौर पर लोग पटुआ अर्थात जूट का प्रयोग रस्सियों में करते हैं मगर जूट कला के माध्यम से भी लोग अपनी पहचान बुलंद कर रहे हैं.
पटना बिहार की रहने वाली डॉ. मृगनयनी कुमारी भी तमाम साधनों का प्रयोग कर अपने शौक को संवारने का काम कर रही हैं, जिसमें जूट कला प्रमुख रूप से शामिल है. 61 वर्षीय मृगनयनी लगभग 17 सालों से जूट कला से जुड़ी हैं और इसके माध्यम से अपनी पहचान बना रही हैं. उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से पीएचडी पूरी की है मगर अपनी हॉबी को उन्होंने अपना रोज़गार का ज़रिया बनाया है.
जूट से बनाती हैं अनेकों सामान
मृगनयनी बताती हैं कि वे जूट के कपड़ों और रस्सियों से कलात्मक चीज़ें बनाने का काम करती हैं. जूट के कपड़ों पर वे बिहार के लोक नृत्य को दर्शाने का काम करती हैं ताकि लोग अपनी संस्कृति को जान सकें, जिसमें झिझिया नृत्य, चैता नृत्य आदि शामिल होते हैं. इसके साथ ही उन्होंने जूट से बने कपड़ों पर भारत माता और गांव के दृश्यों को भी उकेरने का काम किया है.
साथ ही जूट की रस्सियों से वे गुड़िया, साइकिल, रिक्शा आदि बनाने का काम करती हैं, जिसमें केवल बेकार पड़ी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे- प्लास्टिक के बोतल पर जूट की रस्सियों को लपेट कर उसे मनचाहा रूप देना. उनका उद्देश्य है वेस्ट से बेस्ट बनाने का होता है. हालांकि कोरोना के कारण ऑर्डर आने कम हो गए हैं मगर ऑर्डर के अनुरूप लगभग 10,000 तक की कमाई हो जाती है.

शौक से सीखा है जूट आर्ट
मृगनयनी बताती हैं कि साल 2002 में जब वे उद्यमिता विकास केंद्र में बतौर नर्सरी ट्रेनिंग टीचर कार्य कर रहीं थीं, उसी साल जूट कला सीखने की ट्रेनिंग हुई थी, जिसमें उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया था. वहां से जूट कला सीखने के बाद साल 2003 में उन्होंने चार महिलाओं समेत पटना के गांधी मैदान में लगे महिला विकास मेला में भाग लिया था. जहां उनके बनाए सारे सामानों को लोगों ने हाथों-हाथ लिया था. साथ ही मेला के समापन के बाद उन्हें बेस्ट स्टॉल का अवार्ड मिला था और यही से उनका कारवां आगे बढ़ता गया.

कोलकाता से मंगाती हैं जूट के कपड़े
मृगनयनी बताती हैं कि जूट के कपड़ों में बारीकी कोलकाता से मंगाए कपड़ों में अधिक होती है, जिससे उसे रुप देने में आसानी होती है. साथ ही उनके साथ लगभग 20-25 महिलाएं भी जुड़ी हैं, जिससे उनकी कला रोज़गार का जरिया भी बन जाती है.
उन्होंने 2014 में क्राफ्ट बाज़ार में भी भाग लिया था, जिसमें उन्हें बेस्ट स्टॉल का अवार्ड मिला था. दूरदर्शन प्रोग्राम द्वारा आयोजित फुरसत घर और विहान मेला में भी उन्होंने भाग लिया था.


मृगनयनी बताती हैं कि उन्होंने 2019 में उपेंद्र महारथी के तहत तीन महीनों तक महिलाओं को जूट कला की ट्रेनिंग देने का काम किया है. साथ ही 2017 में उपेंद्र महारथी द्वारा आयोजित हॉबी क्लास में उन्होंने 15 महिलाओं को ट्रेनिंग देकर रोज़गार सृजन में अपना योगदान दिया है.
नज़रें अब नेशनल अवार्ड पर
61 वर्षीय मृगनयनी के जज्बे की ही बानगी है कि उनके कदम कोरोना काल में भी नहीं थमने दिया. संस्कृति कला केंद्र के ज़रिये ऑनलाइन क्लास के ज़रिये वे लोगों को ट्रेनिंग देती रहीं. यह उनकी मेहनत ही है कि आज उनकी झोली में स्टेट अवार्ड समेत वूमेन अचीवर्स अवार्ड और उपेंद्र महारथी अवार्ड शामिल है. अब उनकी नज़र नेशनल अवार्ड पर है, जिसके लिए वे पूरी मेहनत और लग्न के साथ जुड़ी हैं. मृगनयनी बताती हैं कि यह सब उनके परिवार वालों का सपोर्ट ही है कि उनके कदम आगे बढ़ते जा रहे हैं.
यह लेख सौम्या ज्योत्स्ना द्वारा लिखा गया है।