विश्व में कुछ जगह ऐसे भी हैं जहाँ महिलाओं को हर काम करने की खुली छूट नही है। महिलाएं सीमा में रहकर कोई भी काम करती हैं। पर आज हम एक ऐसी महिला के बारे में बताएंगे जिन्होंने इन बंदिशों को तोड़ते हुए आगे बढ़ी।
लद्दाख के एक छोटे से गांव की रहने वाली जुलेखा बानो। जो एक ऐसे समुदाय से आती हैं जहां आज भी बच्चों को पढ़ने, खेलने या टीवी देखने की मनाही है। लेकिन इसके बाद भी सामाजिक बहिष्कार को सहते हुए जुलेखा बानो ने ना केवल उच्च शिक्षा प्राप्त की बल्कि अपने समुदाय की पहली वकील बनी।
गांव था बहुत पिछड़ा
लद्दाख के बोग्दंग गांव की रहने वाली जुलेखा बानो बाल्टी समुदाय से संबंध रखती हैं। यह समुदाय भारत के उत्तरी भाग कारगिल के क्षेत्र में रहता है। इस समुदाय की अपनी अलग संस्कृति एवं भाषा है। जुलेखा बानो के गांव में आतंकियों के कारण हमेशा दहशत बनी रहती है। जिसके कारण उनके गांव में ना मोबाइल टावर है, ना टीवी। यहां तक की उनके गांव में किसी पर्यटक को भी आने की अनुमति नहीं है। गांव के लोग आतंकियों के कारण अपने बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल तक नहीं भेजते थे।
पिता ने सहयोग किया
जुलेखा के पिता ने जुलेखा बानो और उनकी बहन को शिक्षा दिलाई। जुलेखा बानो ने गांव के पास स्थिति आर्मी गुडविल स्कूल में अपनी चौथी कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। जुलेखा बानो के पिता एक छोटे ठेकेदार थे, जो सेना की मजदूरों की जरूरतें पूरी करने में मदद करते थे। उन्होंने अपने बच्चों के सपनों के साथ कभी समझौता नहीं किया। एक बार जब जुलेखा बानो ने अपने स्कूल के आयोजन में नृत्य किया तो इसका खामियाजा उनके परिवार को भुगतना पड़ा। समुदाय के लोगों ने उनके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया।
पिता को बेचनी पड़ी जमीन
सामाजिक बहिष्कार होने के बाद अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए जुलेखा बानो के पिता को अपनी जमीन तक बेचनी पड़ी। उनके पिता ने अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कई अधिकारियों, प्रतिनिधियों और पत्रकारों से संपर्क किया। लेकिन किसी ने उनकी कोई मदद नहीं की।
वकील बनी जुलेखा
देहरादून में पढ़ाई करने के बाद जुलेखा बानो ने वकालत की पढ़ाई पूरी की। जब उनका अंतिम परिणाम आया और उसमें वो उत्तीर्ण हुईं तब उन्हें पता चला कि वह अपने समुदाय की पहली महिला वकील बनी हैं। जुलेखा बानो ने वकील बनकर अपने समुदाय के सामने एक नई मिसाल पेश की हैं। यही नहीं जुलेखा बानो वकालत के साथ-साथ गांव में मानसिक और दिव्यांग बच्चों के लिए एनजीओ शुरू करने का प्रयास कर रही हैं।