नए साल की शुरआत में आने वाला त्योहार होली हिन्दु धर्म मे काफी लोकप्रिय है। बसंत महीना के आगमन से ही होली का इंतजार शुरु हो जाता है। होली को लेकर लोग काफी उत्साहित रहते हैं। कहते हैं इस त्योहार में लोग एक दूसरे को रंग लगाकर सारे गिले शिकवे को भुला देते हैं। होली से पहले होलिका दहन आता है। इस दिन लोग होलिका की पूजा अर्चना कर उसे आग में भस्म कर देते हैं। होलिका दहन के अगले दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। इस दिन सभी घरों में तरह तरह के पकवान बनते हैं। दिन में रंगों की होली खेली जाती है और शाम में लोग एक दूसरे को गुलाला लगाकर होली की शूभकामनाएं देते हैं।
होलिका दहन की पूजा को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।चलिए जानते हैं होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधी के बारे में-
होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन को बुड़ाई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं की माने तो होलिका दहन की आग को बहुत प्रभावी और पवित्र माना जाता है। इसके प्रभाव से नकरात्मकता, रोग, दोष, दूर होने की मान्यता है। इस दिन किसी पेड़ की शाखा को जमीन में गाड़कर चारों तरफ से लकड़ियों और गोबर के उपले से घेर दिया जाता है। उसके बाद एक निश्चित मुहूर्त में जलाया जाता है। इस दिन लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है
होलिका दहन का मुहूर्त
इस बार होली शुक्रवार 18 मार्च को है। होली के एक दिन पूर्व यानि 17 मार्च को रात को होलिका दहन किया जाएगा । इसके लिए शुभ मुहूर्त रात 09:20 बजे से रात 10:31 बजे तक ही यानी कि करीब सवा घंटे तक ही रहेगा. वहीं इसके अगले दिन यानी कि 18 मार्च 2022, शुक्रवार को होली खेली जाएगी.
होलिका दहन की पूजा विधी
होलिका दहन की पूजा करने से पहले स्नान कर के पवित्र हो जाए। इसके बाद पूजा के स्थान पर पूरब या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के बैठ जाएं। जिस स्थान पर पूजा करना है वहां प्रहलाद की मूर्ति और गाय की गोबर से बनी होलिका को स्थापित करें। पूजा में फूल, रोली, हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, 7 तरह के अनाज, नए फसलों की बालियां और एक बर्तन में जल की आवश्यकता होगी। पूजा के बाद पकवान और मिठाईयों का भोग लगाएं। इसके बाद होलिका के चारों ओर सात परिक्रमा करें. पक्रिमा के बाद चारों ओर से सूखी लकड़ी, उपलों का ढेर लगाकर होलिका दहन करें.