जिला मुख्यालय से करीब एक किमी की दूरी पर गोलघर स्थित काली मंदिर है। सुबह मंदिर के किवाड़ खुलते ही मां के दर्शन को भक्तों की लंबी कतार लग जाती है। हाँ बात अगर नवरात्र की हो तो मंदिर के आसपास मेले जैसा माहौल बन जाता है। पूजन सामग्री और प्रसाद की दर्जनों दुकानें यहां सजती हैं। भक्त दूर-दूर से आकर माता के दर्शन कर विधि-विधान से पूजा अर्चना करते हैं। सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
मान्यता और विशेषता

ऐसी मान्यता है कि गोलघर की काली माता बहुत सिद्ध हैं। भक्तों का मानना है की माता स्वयं सिध्दिरात्री का स्वरूप है जो अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती है सुबह, दोपहर और शाम में काली मां की प्रतिमा के स्वरूप में बदलाव होता है। माता के मंदिर मे जो कोई भी सच्चे दिल से कुछ मांगता है तो उसकी वह मनोकामना जरुर पुरी होती है , श्रद्धालुओं का कहना है की माता के मंदिर से कोई निराश होकर नही जाता है । आपको बता दे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रि योगी आदित्यनाथ से लेकर भोजपुरी फिल्म अभिनेता और गोरखपुर के सांसद रवि किशन जी भी काली माता मंदिर मे दर्शन करके माता का आशिर्वाद लेने आये थे।
इतिहास

मंदिर को देवी स्थल के रूप में मान्यता कब मिली, इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं है लेकिन इसकी प्राचीनता पर कोई संदेह नहीं, स्व. पीके लाहिड़ी और डॉ केके पांडेय ने अपनी पुस्तक “आएने गोरखपुर” में इस मंदिर का जिक्र किया है
वर्षों पूर्व गोलघर का यह पूरा क्षेत्र जंगल था, जनश्रुति है की गोलघर का यह हिस्सा कभी पुरिदलपुर गाँव था और ये देवी उनकी कुल देवी हुआ करती थी
उसी जंगल में एक स्थान पर माता का मुखड़ा धरती चीर कर ऊपर निकला। जब धरती से मां का मुखड़ा निकलने की बात आस पास के लोगों में फैली तो यहां भीड़ जुटनी शुरू हो गई और प्रतिमा का पूजन-अर्चन शुरू हो गया।
माता के एक भक्त लाला रामअवतार शाह को एक रात स्वपन आया की यहा पर एक मंदिर का निर्माण करायें जिसके अनुसार उन्होने एक छोटे मंदिर का निर्माण कराया ।
बाद में श्रद्धालुओं की आस्था देखकर जंगीलाल जायसवाल ने विक्रम संवत 2025 में वहां मंदिर का निर्माण कराया। तभी से प्रतिदिन मंदिर में पूजा होने लगी।
आज भी मौजूद है माता का मुखौटा

मंदिर बनाने के बाद यहाँ नियमित रूप से पूजा अर्चना होने लगी पूर्व में माता के जमीन से निकली मूर्ति की ही पूजा होती थी बाद में यहाँ काली माता की एक बड़ी मूर्ति प्रतिस्थापित की गयी, मूर्ति के ठीक सामने स्वयम्भू माता का मुखौटा आज भी वैसा ही है जैसा जमीन से निकला था