डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है क्योंकि इश्वर ज़िन्दगी देते हैं और डॉक्टर उस ज़िन्दगी को मौत के मुंह से बाहर निकालते हैं। डॉक्टर भी सैनिक की तरह होते हैं, जिस प्रकार सैनिक देश की सुरक्षा करते हैं ठीक उसी प्रकार एक चिकित्सक सभी के जीवन की सुरक्षा करते हैं। यदि देखा जाये तो आज के समय में चिकित्सा एक व्यवसाय का रूप बन गया है। पैसे कमाने के लिये डॉक्टर भिन्न-भिन्न प्रकार के हथकण्डे अपनाने लगे हैं।
हालांकि अभी भी कुछ चिकित्सक ऐसे हैं, जो चिकित्सा को व्यवसाय का रूप ना मानकर सच्चे भाव से लोगों की सेवा में जुटे हैं, जिनमें एक नाम डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह का शामिल है। वह बिना फीस लिये लोगों का इलाज करते हैं और दवा भी खुद देते हैं।
डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह का परिचय
दिलीप कुमार सिंह (Dileep Kumar Singh) बिहार (Bihar) राज्य के भागलपुर (Bhagalpur) से पीरपैंती गांव के निवासी हैं तथा इनकी उम्र 92 वर्ष है। उनके पिता का नाम डॉक्टर यमुना प्रसाद सिंह था, जो बहुत मशहूर डॉक्टर थे। दिलीप अपने पिता के दिखाए मार्ग पर चलते हुये बहुत ही सादा जीवन व्यतीत करते हैं। वह लोगों का इलाज इस तरह से करते हैं, जिससे लोग उन्हें भगवान मानते हैं। इसके अलावा वह भागलपुर के IMA चैप्टर के गॉडफादर भी माने जाते हैं।

पद्म पुरस्कार से सम्मानित
इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर कई लोगों को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जिसमें डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह भी मौजूद थे। दिलीप कुमार पद्म पुरस्कार से सम्मानित होने वाले सर्वाधिक उम्र के डॉक्टर हैं।
मरीज को दवा बिना किसी फीस के
एक तरफ जहां चिकित्सा एक व्यवसाय के रूप में परिवर्तित हो रही है, वहीं डॉक्टर दिलीप आज भी चिकित्सा को एक फर्ज़ के रूप में निभा रहे हैं। डॉक्टर दिलीप रोगी को दवा ना लिखकर स्वयं ही अलबत्ता पुड़िया बनाकर देते हैं और इसके लिये वह किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लेते हैं। उनकी दवा से अधिकांश मरीज जल्द ही स्वस्थ्य भी हो जाते हैं।

विदेश की चकाचौंध ठुकरा लौटे अपने देश
डॉक्टर दिलीप कुमार पटना के प्रसिद्ध PMCH और DMCH से शिक्षा ग्रहण किये हैं। वह अपनी योग्यता को मजबूत बनाने के लिये कई बार युरोप और अमेरिका भी जा चुके हैं परंतु वे विदेश की चकाचौंध को छोड़ वापस अपने धरती पर चले आये।
पैसे की जगह इंसानियत को महत्व दिया
एक समय जब भागलपुर में कालाजार महामारी के रूप में फैल गई थी, तब डॉक्टर दिलीप पैसे को महत्व ना देकर लोगों की सेवा में जुट गये। उन्होंने पैसे को महत्व ना देकर इंसानियत को तरजीह दी और आज वह लोगों के लिये भगवान बन गये हैं।
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