दुनिया में भारत एक ऐसी जगह है, जहां सबसे ज़्यादा मिर्च और हल्दी का निर्यात होता है। पिछले कुछ वर्षों में लगातार इसके निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। साल 2019-20 के दौरान भारत ने लगभग 4,84,000 मिर्च और हल्दी उत्पादों का निर्यात किया, जिनका मूल्य लगभग 6211.70 करोड़ रुपए था। भारत के कुल मसाला का निर्यात मात्रा के आधार पर 40 फ़ीसदी से अधिक और मूल्य के आधार पर 29 फीसदी हिस्सेदारी है। इस प्रकार अगर देखा जाए तो हल्दी का निर्यात मात्रा के आधार पर 11 फ़ीसदी और मूल्य के आधार पर 6 फ़ीसदी की हिस्सेदारी है। हल्दी का निर्यात भारत से लगभग 1,36,000 टन, जिसका मूल्य 1216.40 करोड़ रुपए है।
कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन के दौरान इस इलाके में उगाई मिर्च को लंदन तक भेजा गया। इसके अलावा दुबई और श्रीलंका से भी आर्डर मिला है और यह मिर्च सऊदी अरब और चीन को भी भेजी जाती है।
मिर्च और हल्दी की एक्सपोर्ट डिमांड बढ़ी
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हल्दी हमारे स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभदायक है। यही कारण है कि इस महामारी के दौरान लोगों में इसकी लोकप्रियता और बढ़ गई। पिछले वर्ष 2020-21 की पहली छमाही के दौरान मात्रा के आधार पर निर्यात में 42 फीसदी की उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।
क्रेता-विक्रेता बैठक का आयोजन मिर्च और हल्दी के लिए मसाला बोर्ड द्वारा किया गया, जिसका फोकस आंध्र प्रदेश है। बताया जाता है कि बैठक में 245 संबंधित पक्षों ने भाग लिया, जिसमें बोर्ड द्वारा वित्त वर्ष 2021-22 मैं 14 क्रेता-विक्रेता बैठक का आयोजन किया गया।

मसाला बोर्ड के सचिव और चेयरमैन डी. साथियान ने क्रेता- विक्रेता बैठक की सफलता के बारे में बताया कि इसके जरिए सुदूर (बहुत दूर) क्षेत्रों के किसानों को फसल की अच्छी कीमत मिली है। इसके साथ ही किसानों और किसान समूहों तक पहुंच भी आसान हुई है।
कितने देशों को करता है निर्यात?
साथियान ने बताया कि पिछले साल 185 देशों को 225 श्रेणी (समूह) में मसालों को भेजा गया। उन्होंने मसालों में ज़्यादा से ज़्यादा संवर्धन और कारोबारियों को प्रसंस्करण और भंडारण सुविधाओं के लिए मसाला पार्क की उपलब्धता की भी बात कही है।
जीवीएल नरसिम्हा राव जो क्रेता-बैठक राज्यसभा सांसद और मसाला बोर्ड के सदस्य है, उन्होंने इसका उद्घाटन किया। उन्होंने इस मौके पर बताया कि पिछले दशक में मिर्च का निर्यात लगभग दोगुना हो गया है।
उन्होंने बताया कि आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर करने के लिए सभी क्षेत्रों को एकीकरण करने की ज़रूरत है। जिससे माल सप्लाई करने पर बेहतर मूल्य प्राप्त हो सके। उन्होंने मसालों के अधिक मूल्य प्राप्त करने की आवश्यकता पर भी बात किया और निर्यातकों से आह्वाहन किया की मिर्च प्रसंस्करण में निवेश के तरीके और निर्यात में वृद्धि के लिए विचारों के साथ आगे आए।
मसाला बोर्ड और बागवानी विभाग मिर्च, हल्दी और काली मिर्च जैसे मसालों का उत्पादन करने वाले देश जैसे आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य में लगातार विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू कर रहे हैं।

एमएसपी घोषित हो तो काफी फायदेमंद हो सकती है, हल्दी
निजामाबाद ज़िला टर्मरिक फार्मर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष तिरुपति रेड्डी से हमने फोन पर बात की। तिरुपति ने बताया कि अगर केंद्र सरकार हल्दी की एमएसपी घोषित कर दे तो इसकी खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है। उन्होंने बताया कि हम यही चाहते हैं कि 15,000 प्रति क्विंटल की दर से इसकी एमएसपी घोषित हो। जहां किसान को अच्छा दाम नहीं मिल पा रहा है। वही प्रोसेसर सारा मुनाफा कमा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम से 0-55 रुपए किलो हल्दी लेकर व्यापारी 80-90 रुपए से अधिक दाम पर बेचते हैं। यूपीए और एनडीए दोनों के शासनकाल में तेलंगाना के हल्दी किसानों को तीन बार दिल्ली के जंतर-मंतर पर टर्मरिक बोर्ड बनाने और इसकी एमएसपी घोषित करने की मांग को लेकर आंदोलन कर चुके हैं।
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भारत ‘हल्दी उत्पादक’ एक्सपोर्ट में दुनिया का लीडर है
रेड्डी कहते हैं कि तंबाकू से लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचता है, परंतु यहां टोबैको बोर्ड बन गया है। वहीं दूसरी ओर सेहत के लिए लाभदायक हल्दी को बढ़ावा देने के लिए कोई बोर्ड नहीं बना है। यह सुनकर थोड़ा अजीब लगता है कि दुनिया की लगभग 80 फ़ीसदी हल्दी पैदा करके हम वर्ल्ड लीडर हैं। हल्दी को दूसरे देशों में निर्यात करने में भारत की हिस्सेदारी लगभग 60 फ़ीसदी से अधिक है परंतु किसान को इसका तब तक सही दाम नहीं मिलेगा जब तक कि इसका एमएसपी घोषित ना हो जाएं। अगर ऐसा हो जाए तो किसानों को परंपरागत खेती से हटकर हल्दी पैदावार की तरफ रुझान ज्यादा बढ़ेगा।

राज्यपाल की कमेटी की सिफारिश भी ठंडे पड़ गए हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2018 में कृषि क्षेत्र को लाभकारी बनाकर इसकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए
राज्यपालों की हाई पावर कमेटी का गठन किया था, जिसमें हरियाणा, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश के राज्यपाल सदस्य और यूपी के तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक अध्यक्ष थे। इस कमेटी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दी गई अपनी रिपोर्ट में 21 सिफारिश की थी, जिसमें हल्दी को एमएसपी में लाने का सुझाव दिया गया था परंतु अब तक सरकार ने इस पर अमल नहीं किया है।
कब होती है इसकी फसल
रेड्डी के अनुसार हल्दी की फसल तैयार होने में लगभग 7 से 9 महीने तक का समय लगता है। यह एक खरीफ मसाला है जो जून से अगस्त महीने के दौरान बोया जाता है। इसकी नई फसल फरवरी से अप्रैल तक काटी जाती है। कृषि विशेषज्ञों के द्वारा इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि हल्दी की खेती लगातार एक ही ज़मीन पर ना हो क्योंकि यह ज़मीन से ज़्यादा पोषक तत्वों को खींचती है।