कैंसर अब एक सामान्य रोग हो गया है। हर दस भारतीयों में से एक को कैंसर होने की संभावना होती है। कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है। परन्तु यदि रोग का निदान व उपचार प्रारम्भिक अवस्थाओं में किया जाए तो इस रोग का पूर्ण उपचार संभव है।
आज हम आपको 18 साल की निखिया के बनाए गए एक सिस्टम के बारे में बताएंगे जो मिनटों में कैंसर का पता लगागएगा। इसकी कीमत भी बहुत कम है। आइये जानते है इस सिस्टम के बारे में।
निखिया समशेर का अनोखा सिस्टम
बैंगलोर की 18 वर्षीया निखिया समशेर ने एक ऐसा डिवाइस बनाया है, जो कैंसर के खतरे का पहले ही पता लगा लेता है और साथ ही इस बात की जांच भी करता है कि व्यक्ति को कैंसर है या नहीं और अगर है, तो किस स्टेज पर है। निखिया, ग्रीनवुड हाई इंटरनेशनल स्कूल से स्नातक हैं। वह इस सिस्टम को बनाकर सुर्खियों में हैं। इस डिवाइस की कीमत भी बहुत कम है। इसकी कीमत मात्र 38 रुपया है। जांच के बाद इसका परिणाम भी बहुत जल्द आ जाता है। इसके परिणाम को आने में मात्र 15 मिनट लगते हैं।
स्कूल में जाना कैंसर के बारे में
निखिया जब आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं। वह अपने स्कूल के ‘कम्पैशनेट क्लाउन्स’ कार्यक्रम का हिस्सा थीं। इसमें छात्रों को अलग-अलग कैरेक्टर के रूप में तैयार होकर बच्चों के वार्ड में जाना था और उन्हें खुश करना था। बच्चों से मिलने के बाद, एक दिन जब वह अस्पताल से बाहर निकल रही थी, तो उन्होंने एक आदमी को देखा। उसका चेहरा पट्टियों से लिपटा हुआ था और उसका जबड़ा हटा दिया गया था। उन्होंने तुरंत साथ में चल रही नर्स से इशारा करते हुए पूछा कि उन्हें क्या हुआ है? नर्स ने उन्हें बताया कि वह मुंह के कैंसर से पीड़ित है उस दिन ही निखिया ने कैंसर के बारे में जाना।
पहले स्टेज पर किया काम
निखिया के मन में यह बात हमेशा घूमती रहती थी कि कैंसर का पहला स्टेज जल्दी पता क्यों नही लगता है। उन्होंने इस पर काम करना शुरू किया। साल 2016 में निखिया ने मुंह के कैंसर की जांच को लेकर इंटरनेट पर डाले गए वैज्ञानिक शोध पत्रों को पढ़ना शुरू कर दिया। उस समय निखिया की उम्र कम थी और वह कक्षा नौ में पढ़ती थीं। उन्हें कई मेडिकल कॉन्सेप्ट को समझने में मुश्किलें आ रही थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। निखिया की मेहनत ने उन्हें तानिया दास से मिलवाया। वह आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जेनेटिक रिसोर्सेज़ में सीनियर शोधकर्ता थे। निखिया ने उन्हें अपना गुरु माना। बाद में निखिया की मुलाकात वैज्ञानिक विश्लेषक चैतन्य प्रभु से हुई।
दोनों गुरुओं का साथ मिला
छह महीने तक दोनों गुरुओं के सहयोग से वह अपने घर पर ही शोध करती रही। उसी दौरान उन्होंने एक ऐसा रिजेंट बनाया, जो लार से मुंह के कैंसर का पता लगाने में मदद करता है। जब उनके दोनों गुरुओं ने इसे मंजूरी दे दी, तब उन्होंने फर्मास्यूटिकल्स सप्लायर से इन रसायनों को मंगवाया और घर पर ही परीक्षण करना शुरू कर दिया। यह रिजेन्ट तीन प्रकार के रसायनों- थियो बार्बिट्यूरिक एसिड, ट्राई क्लोरो-एसिटिक एसिड और ऑर्थो-फॉस्फोरिक एसिड को मिलाकर बनाया गया था। ये रसायन शरीर में एक बायोमार्कर, मालोंडियलडिहाइड की उपस्थिति का पता लगाते हैं।
कुछ ऐसे होती है जांच
कंपोजिशन के प्रशिक्षण के लिए निखिया ने मालोंडियलडिहाइड एसिड का भी इस्तेमाल किया। उन्होंने एक टेस्ट ट्यूब में पानी भरा और रिज़ेंट को इसमें डालकर मिश्रण को गर्म किया। तब इसमें कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई और न ही लिक्विड के रंग में कोई बदलाव आया। लेकिन जब पानी में मालोंडियलडिहाइड एसिड मिलाया और रिजेंट डाला तो पानी का रंग बदल गया। निखिया का कहना है कि पानी का रंग किस हद तक बदलेगा यह पानी में मौजूद मालोंडियलडिहाइड एसिड की मात्रा पर निर्भर करता है। अगर इसका रंग हल्का पीला है, तो यह बताता है कि कैंसर अभी शुरुआती स्टेज में है और अगर इसका रंग बदलकर गहरा भूरा हो जाता है, तो यह कैंसर के बाद की यानी आखिरी स्टेज को दर्शाता है।
मात्र 38 रुपया दाम
मात्र 38 रुपये के इस उपकरण को जून 2018 से फरवरी 2019 के बीच 500 लोगों के लार के नमूने लेकर उनकी जांच की गई। डिवाइस 96 प्रतिशत तक सटीक रिज़ल्ट दिखा रहा था। उनके अनुसार, इस डिवाइस के साथ-साथ इन सभी लोगों की अस्पताल में सामान्य जांच भी की गई थी और इसी के आधार पर इसके रिज़ल्ट का आकलन किया गया था। वर्तमान में अभी यह डिवाइस मार्केट में नही उतारा गया है। पर जल्द ही पूरी प्रक्रिया करके इसको बाजार में उतारा जाएगा।