“वही दूसरों की मदत कर सकता हैं,जो दर्द के एहसास को समझता हैं
आज हम आपको 5 हजार से अधिक बच्चों को नया जीवन प्रदान कर निःस्वार्थ भाव से उनकी सेवा करने वाले ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. भूपेंद्र कुमार सिंह के बारे में बताएंगे जिन्होंने स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में नाम कमाया। उनके अद्भुत कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। आइये जानते हैं उनके बारे में।
दुनिया में बनाई पहचान
उत्तराखंड के जालौन के कोटरा कस्बे के एक छोटे से गांव सैदनगर के एक किसान परिवार में जन्में भूपेंद्र कुमार सिंह संजय जी बचपन से ही पढ़ाई में तेज़ थे। उनके पिता दयाराम जी पेशे से किसान थे। संजय ने जीएसबीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर से एमबीबीएस किया। इसके बाद काफी समय तक उन्होंने पीजीआई चंडीगढ़ और सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली में सेवा दी। इस बीच उन्होंने जापान, अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन समेत कई देशों से फेलोशिप हासिल की और आगे बढ़ते रहे।
लोगों को दिया जीवनदान
विश्व विख्यात ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. भूपेंद्र कुमार सिंह संजय 40 साल के अपने करियर में निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर के माध्यम से ऐसे पांच हजार से ज्यादा बच्चों को नया जीवन दे चुके हैं। डॉ. संजय ने दुघर्टनाओं में घायल एवं कैंसर पीड़ितों के ऑपरेशन कर उन्हें नई जिंदगी दी है। उन्होंने सामाजिक क्षेत्र में भी उत्कृष्ट कार्य किये हैं। उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में भी डॉ. संजय व उनकी टीम 200 से अधिक स्वास्थ्य शिविर लगा चुके हैं। सड़क दुर्घटना के कारण होने वाली शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक क्षति का आकलन करते हुए उन्होंने पाया कि इस मुद्दे पर वृहद स्तर पर जन जागरूकता की जरूरत है। वह लगातार इस ओर कार्य कर रहे हैं।
सरकार ने किया सम्मानित
विश्व विख्यात ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. भूपेंद्र कुमार सिंह संजय जी के चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। यही नहीं सर्जरी में हासिल की गई उपलब्धियों को देखते हुए ही उनका नाम लिम्का और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। वहीं, सामाजिक उपलब्धियों के लिए उन्हें इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में स्थान मिल चुका है। इसके साथ ही 2005 में हड्डी का सबसे बड़ा ट्यूमर निकालने का विश्व रिकॉर्ड भी उनके नाम दर्ज हुआ। इसके अलावा 2002, 2003, 2004 व 2009 में सर्जरी में कई अभिनव उपलब्धियों के लिए उन्हें लिम्का बुक में स्थान मिला था।