पिछले कुछ सालों से किसान जंगली जानवरों से बेहद परेशान हो गए हैं। कुछ किसान तंग आकर खेती ही छोड़ चुके। हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के मंडी जिले के सदर ब्लॉक के गोगरधार गांव के रहने वाले दर्शन पाल (Darshan pal) भी उन में से एक हैं। उन्होंने जंगली जानवरों और बंदरों से परेशान होकर खेती करना छोड़ दिया था, मगर जब साल 2017 में दर्शन को जंगली गेंदे की खेती के बारे में पता चला कि जंगली जानवर इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकते तब उन्होंने इसकी खेती करने का फैसला किया। आज वह गेंदे की खेती से अच्छा मुनाफ़ा भी कमा रहे हैं।
मक्का की खेती छोड़ शुरू की जंगली गेंदे की खेती
दर्शन बताते हैं कि वह पहले भी मक्का की खेती करते थे परंतु जंगली जानवरों और बंदरों की वजह से उनकी फसल बर्बाद हो जाती थी। वह बताते हैं कि हर खेत की रखवाली करना संभव नहीं था, इसलिए जहां जानवर ज्यादा नुकसान पहुंचाते थे, वहां उन्होंने खेती करना ही छोड़ दिया। चार साल पहले वैज्ञानिकों ने जंगली गेंदे की खेती की जानकारी दी, जिसे जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। साथ ही इसमें ज्यादा मज़दूरों की ज़रूरत भी नहीं पड़ती।

जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान ने की मदद
अब दर्शन पांच बीघा ज़मीन में गेंदे की खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें अच्छी कमाई हो रही है। मंडी ज़िले के तरह गोगरधार, सेराज, चंबा ज़िले के भटियाट, सलूनी, कुल्लू ज़िले में बंजर और शिमला ज़िले के रामपुर जैसे गांव में लगभग 400 हेक्टेयर में जंगली गेंदों की खेती हो रही है। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर) का जंगली गेंदे की खेती में बहुत ही अहम योगदान रहा है।
जंगली गेंदे को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते
डॉ. राजेश कुमार (Dr. Rajesh Kumar) हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक हैं। वह बताते हैं कि जंगली गेंदें का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसे जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचा पाते। राजेश बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में जंगली जानवर, गाय, बंदर और सुअर जैसे जानवर फ़सलों को नुकसान पहुंचाते हैं। जिस वजह से यहां अनेक किसानों ने खेती करना भी छोड़ दिया। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को मिला कर लगभग 400 से 450 हेक्टेयर में जंगली गेंदे की फसल हो रही है। केवल हिमाचल प्रदेश में लगभग 300 हेक्टेयर में खेती हो रही है। इसकी शुरूआत साल 2016-17 में की गई थी। इसे तैयार होने में केवल पांच-छह महीने का ही समय लगता है।

जंगली गेंदे को बेचना किसानों के लिए बहुत आसान
जंगली गेंदे से प्रति हेक्टेयर किसानों को सवा लाख से डेढ़ लाख का मुनाफा हो रहा है। इसे बेचने में भी किसानों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र में जंगली गेंदे के तेल की मांग बहुत ज्यादा होती हैं। डॉ राकेश बताते हैं कि वह लोग कुछ ऐसी कंपनियों से बात कर चुके हैं, जिनकी तीन-चार टन तेल की मांग रहती है। प्रति हेक्टेयर से लगभग 30-35 किलो तेल निकलता है। अब ना सिर्फ हिमाचल प्रदेश बल्कि अब इसकी खेती यूपी (UP) तथा एमपी (MP) में भी की जा रही है परंतु दोनों जगहों के उत्पादन में बहुत अंतर पाया मिल रहा है। जिस वजह से पहाड़ी क्षेत्रों में तेल की कीमत बाज़ार में दस हज़ार रुपए किलो है। वहीं मैदानी क्षेत्रों में तेल की कीमत पांच हज़ार रुपए है।

अब तक 50 प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जा चुकी है
डॉ राकेश बताते हैं कि सीएसआईआर के एरोमा मिशन के तहत उन्होंने अब तक 50 प्रोसेसिंग यूनिट लगाई हैं, जिसमें से 35 यूनिट केवल हिमाचल प्रदेश में ही है। इसके अलावा प्रोसेसिंग यूनिट जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, मणिपुर और मिज़ोरम जैसे राज्यों में भी लगाई गई है। इसमें जंगली गेंदे के साथ ही दूसरी एरोमेटिक फसलों की प्रोसेसिंग भी की जा सकती है, जैसे- लेमन ग्रास, पामारोजा आदि। एरोमा मिशन के तहत किसानों को ना सिर्फ इन पौधों की खेती की जानकारी और प्रशिक्षण दी जाती है बल्कि उन्हें बीज भी उपलब्ध कराया जाता है।
जंगली गेंदे की खेती से हो रहा किसानों को मुनाफा
दर्शन पाल के तरह अन्य किसान भी इसे अपने आमदनी का जरिया बना रहे हैं। जैसे- चंबा ज़िले के तल्ला गांव के 47 साल के पवन कुमार (Pawan Kumar) भी जंगली गेंदे की खेती में अपना हाथ आजमा रहे हैं। उनका कहना है कि मक्का की खेती में काफी नुकसान उठाना पड़ रहा था, इसलिए जब जंगली गेंदे के बारे में पता चला तब इसकी खेती शुरू की। जब पहले साल अच्छा मुनाफा हुआ तब अन्य दूसरे किसान भी गेंदा की खेती करने लगे।
आशा करते हैं कि किसानों को ऐसे ही कामयाबी मिलती रहे।
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