हर वो व्यक्ति जो ईमानदारी से पुरी लगन के साथ कड़ी मेहनत करता है, वह व्यक्ति अपने जीवन में सफल जरुर होता है या फिर सफलता के नजदीक पहुँच जाता है।
आज हम आपको पद्मावती बंदोपाध्याय के बारे में बताएंगे जिन्हें भारत की पहली महिला एयर वाइस मार्शल होने का गौरव हासिल है। पद्मावती बंदोपाध्याय ने साल 1968 में उस समय इंडियन एयरफोर्स को ज्वाइन किया था। जब महिलाओं के लिए घर की दहलीज पार कर बाहर काम करना सही नहीं समझा जाता था। लेकिन पद्मावती बंदोपाध्याय ने अपने जुनून और जज्बे से नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया है। उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया था। आइए जानते हैं उनके बारे में।
सपना देखना नही छोड़ा
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय ने उस समय वायुसेना की डगर पर पांव रखा था, जब लड़कियों को घर से निकलने की भी आजादी नहीं थी। अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्हें समाज की बंदिशों को तोड़ना ही पड़ा। आंध्र प्रदेश के तिरुपति में जन्मी डॉ.पद्मावती बंदोपाध्या के सपने शुरू से ही आसमान छूने के थे, लेकिन उनकी राह आसान नहीं थी। उनकी मां को तपेदिक की बीमारी थी। जिसके कारण उन्होंने 4-5 साल की उम्र में ही अपनी मां की प्राथमिक देखभाल करनी शुरू कर दी थी। मां की देखभाल करने के साथ-साथ वो अपनी पढ़ाई भी किया करती थी। घर का कार्य करना और साथ में पढ़ाई करना एक 4-5 साल की बच्ची के लिए इतना सरल नहीं था।
डॉक्टर बनने की प्रेरणा मिली
अपनी मां का ईलाज कराने के लिए पद्मावती बंदोपाध्याय मां को नई दिल्ली ले आई। यहां गोल मार्केट में उनके पड़ोस में उनकी हमनाम और लेडी हॉस्पिटल में मेडिसिन की प्रोफेसर डॉ. एस पद्मावती रहती थीं। सफदरजंग अस्पताल में अपनी मां की बीमारी के ईलाज के दौरान ही लेडी डॉक्टर को देख उन्हें डॉक्टर बनने की प्रेरणा मिली। लेकिन उन्होंने आर्ट्स में अध्ययन किया था। इसलिए ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में मानविकी से विज्ञान स्ट्रीम में कठिन और असामान्य परिवर्तन किया। उन्होंने किरोड़ीमल कॉलेज में प्री-मेडिकल की पढ़ाई की और फिर 1963 में सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज पुणे में दाखिला लिया। वह 1968 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुईं। उन्होंने वायु सेना अधिकारी सतीनाथ बंदोपाध्याय से शादी की।
कई सराहनीय काम किया
डॉ. पद्मावती के जीवन में विशेष मोड़ तब आया जब उन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय सराहनीय कार्य किया। आर्म फोर्स मेडिकल कॉलेज से लेकर वायु सेना में कमीशन अधिकारी बनने तक डॉ. पद्मावती खतरों से काफी हद तक अनजान और बेपरवाह थीं। मगर भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध में हिस्सा लेने के बाद उनके हौसले को पंख लगे और उनकी उड़ान कारगिल युद्ध से होते हुए वायु सेना में एयर मार्शल बनने पर ही रुकीं। उन्होंने वायु सेना में तैनाती के दौरान भारत-पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध और कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया। इस दौरान वह सैनिकों के बीच पांच महीने तक बंकरों में डटकर रहीं। उन्होंने दुनिया को यह दिखा दिया कि युद्ध के क्षेत्र में भी महिलाएं पुरूषों से कम नहीं हैं।
कई सम्मान से सम्मानित
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय अपने उत्कृष्ट कार्यों की बदौलत कई सम्मान से सम्मानित हो चुंकी है। उन्हें विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और राष्ट्रपति से सम्मान पदक सहित देश दुनिया में करीब एक दर्जन से ज्यादा सम्मान मिल चुके हैं। हाल ही में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड ने वर्ष 2014 के लिए वुमेन ऑफ द ईयर चुना है। यही नहीं डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय को भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया है।
आज उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। उन्होंने यह साबित कर दिया की सपनों को पूरा किया जा सकता है अगर मेहनत सही दिशा में हो।